Wednesday, December 25, 2013

क्या सही है ?

क्या सही है ?

जो तुम समझते हो ये वोही है ?
या ना समझने कि बेबसी है ?
क्या सही है?

ये एक  रस्ता है सीधा सादा ?
या इक पहेली है टेढ़ी मेढ़ी ?
या इक तिलिस्म,इक नज़र का धोखा ?
या इक सवाल जो हर कहीं है ?
क्या सही है ?

जो एक रस्ता है ये सीधा सादा, 
पेचीदगी है फिर और भी ज़ियादा।
ये रहगुज़र आती है कहाँ से, 
ये रहगुज़र जाएगी कहाँ तक ?
या ये वहीँ है, रुकी हुई है 
ना जाने कब से,ना जाने कब तक ?
जो मान लूँ मैं कि इस रहगुज़र 
की इन्तहा में, की आख़रत में 
है एक मंज़िल, है इक ठिकाना। 
फिर इक सवाल उठता है ज़हन में,
क्या है ये मंज़िल,क्या है ये ठिकाना ?

जो हमने सुना गर वोही है मंज़िल 
तो कैसे जानें,ये किसे मिली है ? 
या जो लिखा है वो सब ग़लत है,
या खुद समझने में हि कमी है ?
क्यूँ ये जेहद फिर क्यूँ इतनी मेहनत,
इस शै कि ख़ातिर क्यूँ इतनी शिद्दत,
कि जिसका सच हमको पता नहीं है,
वो चीज़ जाने है भी कि नहीं है ?

तो क्यूँ न खुद का रस्ता चुने हम?
जो दे ख़ुशी क्यूँ ना वो करें हम ?
क्यूँ यूँही ना छोड़ दें ये पहेली ?
ये मंज़िलें,आख़रत,ख़ुल्द , दोज़ख़                                  ख़ुल्द =heaven , दोज़ख़ = hell 
जो सच में हैँ तो हुआ करें ये। 
हम दिखने वाली दुनिया के रहने वाले,
धूप को धूप,ग्रहण को ग्रहण कहने वाले। 
मसरूफ़ दिलचस्प कामों में इतने,
कि ख़ुद से ख़ुद को फुर्सत नहीं है,
कि हम ये सोचें, कि हम ये समझें,
है क्या ग़लत और क्या सही है ?

शारिक़ नूरुल हसन 

Tuesday, August 20, 2013

क्या थी ज़रूरत इसकी?

क्या सबब इसका ,क्या वजह ,क्या ज़रूरत इसकी 
कहता है-सवाल ना कर ,है बड़ी अहमियत इसकी। 
ये जो बेख़ुदी,बदहवासी,बेहोशी की हालत है ,
कहता है- तेरी सोच से परे है मसलेहत इसकी।

दिल में भरा है ग़म, ज़हर ज़िन्दगी में है 
कहते हो खुश रहो। बेवकूफी ही तो है।
सदके का दिलासा भी बहुत ख़ूब है मगर,
बच्चा नहीं हूँ,बहलाते हो तबियत किसकी। 

कहे,बस ग़म उठाये जा और इक आह भी ना कर 
नेमत है उसकी,सोच,दर्द की परवाह भी ना कर। 
ये दर्द उठाना,ख़ुश रहना,उसका शुक्रिया करना,
है हशर में बड़े फायदे, है बड़ी इज्ज़त इसकी।              हशर =judgement day

सर यूँ ही झुका देता।क्यों? ऐसा क्यों किया?
दुनिया बना के,सब कुछ पेचीदा क्यों किया। 
नफ़स,शफ़क़,मौत,ये एहसास क्यों दिया ?                 नफ़स=breath, शफ़क़=love 
मेरे मौला,तू ही बता,क्या थी ज़रूरत इसकी?

शारिक़ नूरुल हसन