Friday, November 9, 2012

तन्हाई कि दोस्ती

तन्हाई कि दोस्ती 

तब ......

एक मैं ,एक तन्हाई और एक जंग हमारी थी ,
जो न जाने कब से ज़हन में, मैंने छेड़ रखी थी,
एक सवाल जिसका छोर दिखता  ही नहीं था,
एक गुथ्ही जो सुलझाऊं, सुलझती ही नहीं थी........

जबकि नफ़रत है मुझे तुझसे,तू तब भी पास आती है,
की तुझे कोसता हूँ जितना,तू उतना मुस्कुराती है,
शायद मजबूरियों पे मेरी तुझको लुत्फ़ आता है।।।।
"तन्हाई!" अब हो चूका बहुत, मुझे जवाब चाहिए ?


और फिर ........

तन्हाइयों के साथ जो कुछ वक़्त गुज़ारा,
अंदाज़ा हो गया, मैं कितना था बेख़बर ।।।
दुनिया के झूठ की सच्चाई- तन्हाई,
हर शख्स क अन्दर की परछांई -तन्हाई।।
हर लम्हा हर घडी,तनहा है हर कोई 
फिर भी जाने क्यूँ  झुठलाये हर कोई,
बड़ी अजीब दुनिया है......
हर सांस का हिसाब तनहा ही देना है ,
छोटी सी है ये बात,कोई मानता नहीं,
बड़ी अजीब दुनिया है......

जब तन्हाई भी एक सच है तो,
नफरत करते हैं क्यूँ इतना,
क्यूँ अपना नहीं लेते हम,
डरते हैं क्यूँ इतना।।।।


और अब.......

तन्हाई की ज़ुबानी,जब उसकी सुनी कहानी,
नफरत नहीं रही,डर भी चला गया।।।।
सब दोस्त हैं मगर,फिर भी कुछ कमी सी है,
कहते हैं सब मगर,' क्या ' कोई सोचता नहीं।।
बड़ी अजीब दुनिया है......
वो जो 'कुछ कमी' सी है,तन्हाई ही तो है,
कि तन्हाई भी है ज़ाहिर,मेरी ' कुछ कमी ' भी ज़ाहिर,
कि हम-नफ्स,हम-सीरत,हम-नसीब हम दोनों,
क्यूँ न दोस्ती कर लें, मुक़म्मल ज़िन्दगी कर लें।।।।।।

                                                  शारिक़ नूरुल हसन