निश्चय,निर्णय,भविष्य,स्वराज और "आप"
ये तंत्र लोकतंत्र है,
हर कोई यहाँ स्वतंत्र है,
ये तंत्र भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।
पर मंथन करें ये AAP भी,
ये देश अब किस ओर है?
कठपुतलियाँ हम बन गए,
हाथों में किसके डोर है?
क्या है विडंबना,देखिये,
मदारी के बंदर बन गए।
हम नाचें,वो नचवाए हैं,
हम,सबका मन बहलाए हैं,
अपना तमाशा बनवाए हैं।
और सांझ जैसे ही हुई,
वो,पैसे सभी बटोर कर,
कुछ पोटली में रख लिया,
बाकी का सारा खा गया,
ठेंगा हमें दिखा गया,
केला हमें थमा गया।
हम-AAP हैं ये जानते,
ये देश है क्या मांगता।
बदलाव का निश्चय करें,
ऊर्जा का अब संचय करें,
अब क्यूं किसी से भय करें।
निश्चय है तो,है देश ये,
ये देश भी है AAP का
निश्चय भी होगा AAP का।
अंतर्मन से अपने पूछिये,
मिथ्या है क्या,है सत्य क्या?
है रोग क्या,अमर्त्य क्या?
और तब ये निर्णय कीजिये।
निर्णय हो ऐसा,ध्यान हो,
जिस पर सदा अभिमान हो।
निर्णय है तो ये देश है,
ये देश भी है AAP का,
निर्णय भी होगा AAP का।
जो शूल अंदर है धंसी,
सदियों से विष जो छोड़ती,
आदत हमें है हो गयी,
इस दंश की,इस शूल की।
ऐसे जीवन के निर्वाह से,
विष-रक्त के प्रवाह से,
रक्त पानी-पानी हो गया,
बुद्धिजीवी कब का सो गया।
अब जागने का वक़्त है,
अब आ गया है वो समय,
सब भूत को अब भूल कर,
इस शूल को अब धूल कर,
AAP स्वयं की अब जय करें,
और जय करें भविष्य की।
भविष्य भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।
पूर्वज ने हमको जो दिया,
उपहार केवल वो नहीं।
ये वचन है,इक आस है।
पर प्रश्न उठता है यहाँ,
"क्या इसका हमें आभास है?"
जब जन्म AAP ने लिया,
एक वचन AAP ने दिया।
आज़ादी का,सद्भाव का,
सौहार्द के स्वभाव का,
भ्रष्टाचार के आभाव का।
फिर प्रश्न उठता है यहाँ,
उत्तर कठिन किंचित नहीं,
बस AAP स्वयं से पूछिये,
बस अधिकार ही ना मांगिये,
कर्तव्य को भी पूजिये।
जो वचन है,कर्तव्य है,
कर्तव्य है तो देश है।
ये देश भी है AAP का,
कर्तव्य भी है AAP का।
जो मिट रहा शरीर है,
किन्तु ये नहीं गंभीर है।
गंभीरता तो तब है जब,
विचार भी मिटने लगें।
किसी और के विचार को,
अपना विचार मान कर,
तम के इस बाज़ार में,
लालच को मंतर जान कर,
अपने विचारों की बलि,
हमनें चढ़ाई हर घड़ी।
अपने विचारों की बलि,
अब AAPको है रोकना।
स्वतंत्रता विचार है,
स्वतंत्रता स्वराज है।
पर स्वतंत्र हैं क्या हम यहाँ,
है AAP को ये सोचना।
प्रत्यक्ष रूपी हैं स्वतन्त्र,
अप्रत्यक्ष को है देखना।
सच देखिये, तो सब ग़ुलाम,
कोई धर्म का,कोई जात का,
कोई प्रांत का,कोई बात का।
(कोई फूल का,कोई हाथ का)
ये देश खंडित हो चुका,
है "उनमें",अब,और "AAPमें"।
अब AAP को है सोचना,
की क्या तजें और क्या चुनें।
वो खोखली जयकार है,
भ्रस्टाचार,हाहाकर है।
और इस तरफ़ है गरिमा,
कर्तव्य है,अधिकार है।
वो खंडन की आवाज़ है,
और इस तरफ़ "स्वराज" है।
"स्वराज" है तो देश है।
"स्वराज" भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।
~शरिक़ एन. हसन