Wednesday, April 9, 2014

निश्चय,निर्णय,भविष्य,स्वराज और "आप"

निश्चय,निर्णय,भविष्य,स्वराज और "आप"

ये तंत्र लोकतंत्र है,
हर कोई यहाँ स्वतंत्र है,
ये तंत्र भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।

पर मंथन करें ये AAP भी,
ये देश अब किस ओर है?
कठपुतलियाँ हम बन गए,
हाथों में किसके डोर है?
क्या है विडंबना,देखिये,
मदारी के बंदर बन गए।
हम नाचें,वो नचवाए हैं,
हम,सबका मन बहलाए हैं,
अपना तमाशा बनवाए हैं।
और सांझ जैसे ही हुई,
वो,पैसे सभी बटोर कर,
कुछ पोटली में रख लिया,
बाकी का सारा खा गया,
ठेंगा हमें दिखा गया,
केला हमें थमा गया।
हम-AAP हैं ये जानते,
ये देश है क्या मांगता।
बदलाव का निश्चय करें,
ऊर्जा का अब संचय करें,
अब क्यूं किसी से भय करें।
निश्चय है तो,है देश ये,
ये देश भी है AAP का
निश्चय भी होगा AAP का।

अंतर्मन से अपने पूछिये,
मिथ्या है क्या,है सत्य क्या?
है रोग क्या,अमर्त्य क्या?
और तब ये निर्णय कीजिये।
निर्णय हो ऐसा,ध्यान हो,
जिस पर सदा अभिमान हो।
निर्णय है तो ये देश है,
ये देश भी है AAP का,
निर्णय भी होगा AAP का।

जो शूल अंदर है धंसी,
सदियों से विष जो छोड़ती,
आदत हमें है हो गयी,
इस दंश की,इस शूल की।
ऐसे जीवन के निर्वाह से,
विष-रक्त के प्रवाह से,
रक्त पानी-पानी हो गया,
बुद्धिजीवी कब का सो गया।
अब जागने का वक़्त है,
अब आ गया है वो समय,
सब भूत को अब भूल कर,
इस शूल को अब धूल कर,
AAP स्वयं की अब जय करें,
और जय करें भविष्य की।
भविष्य भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।

पूर्वज ने हमको जो दिया,
उपहार केवल वो नहीं।
ये वचन है,इक आस है।
पर प्रश्न उठता है यहाँ,
"क्या इसका हमें आभास है?"
जब जन्म AAP ने लिया,
एक वचन AAP ने दिया।
आज़ादी का,सद्‌भाव का,
सौहार्द के स्वभाव का,
भ्रष्टाचार के आभाव का।
फिर प्रश्न उठता है यहाँ,
उत्तर कठिन किंचित नहीं,
बस AAP स्वयं से पूछिये,
बस अधिकार ही ना मांगिये,
कर्तव्य को भी पूजिये।
जो वचन है,कर्तव्य है,
कर्तव्य है तो देश है।
ये देश भी है AAP का,
कर्तव्य भी है AAP का।

जो मिट रहा शरीर है,
किन्तु ये नहीं गंभीर है।
गंभीरता तो तब है जब,
विचार भी मिटने लगें।
किसी और के विचार को,
अपना विचार मान कर,
तम के इस बाज़ार में,
लालच को मंतर जान कर,
अपने विचारों की बलि,
हमनें चढ़ाई हर घड़ी।
अपने विचारों की बलि,
अब AAPको है रोकना।
स्वतंत्रता विचार है,
स्वतंत्रता स्वराज है।

पर स्वतंत्र हैं क्या हम यहाँ,
है AAP को ये सोचना।
प्रत्यक्ष रूपी हैं स्वतन्त्र,
अप्रत्यक्ष को है देखना।
सच देखिये, तो सब ग़ुलाम,
कोई धर्म का,कोई जात का,
कोई प्रांत का,कोई बात का।
(कोई फूल का,कोई हाथ का)
ये देश खंडित हो चुका,
है "उनमें",अब,और "AAPमें"।
अब AAP को है सोचना,
की क्या तजें और क्या चुनें।
वो खोखली जयकार है,
भ्रस्टाचार,हाहाकर है।
और इस तरफ़ है गरिमा,
कर्तव्य है,अधिकार है।
वो खंडन की आवाज़ है,
और इस तरफ़ "स्वराज" है।
"स्वराज" है तो देश है।
"स्वराज" भी है AAP का,
ये देश भी है AAP का।

~शरिक़ एन. हसन

Friday, March 7, 2014

That was not a Happy, Women's Day for me...

The following conversation is based on a real life incidence.It does not intend to hurt feelings and sentiment of any person-living,dead,unborn or alien.So, please don't get offended and sue me.



"Happy Women's Day, Sweetheart...Most beautiful roses for the most beautiful woman in the world."

"Woman? Just shut up"

"I am sorry(Don't know what I have done,but still)."

"I am not a woman"

"What?(in shock)..But you are, I mean I know, for sure(still panicked)"

"Shut up!you pervert...I meant,I am not woman,I am still a girl."

"(Sighs)...But you are 25(by your birth certificate)."

"Exactly! I am 25 and not some aunty."

"But my niece calls you aunty."

"Ask her to call me Didi"

"Didi? Don't you think that would be a bit weird..That will make me your Uncle."

"So what, You look like an uncle already."

"But I am just five months old than you(by my real date of birth)"

"Shut up! I don't know anything, ask your niece to call me didi."

"Ok! I will but why are you making it such a big deal.Be mature."

"U mean I am not mature(nails and canine getting bigger)"

"No,No..I didn't mean to say that...U are so mature(m not proud of myself,at all.).All I wanted to say is that there is nothing wrong in being called a woman..Its like an honour..You should take it that way, Like Sarla(name changed) does..I called her today and wished her.She was happy I called(and complemented me that I am one of the very few guys she knows,who respected women but I am not going to tell you that coz I want to live in peace..escape route,yippie!!)...She read me an article on womanhood, she has.........(Sweetheart's scream and a slap..Chataakkkkk!!!!)"

"You wished her and that too before wishing me??"

"(Recovering from shock,hands still on my cheek)...I tried you but your phone was busy,moreover I was coming to meet you.Check your call waiting list."

"And you think she is more mature than I am...and that bitch,she was telling you about her womanhood."

"Not about her womanhood, Just womanhood and it was an article and believe me it was boring and full of crap(It was damn good...I hate myself so much)...and you are getting so furious as if she was telling me about her measurements."

"Why don't you go and measure her,explore her womanhood...She is more mature, more intellectual than me and I look fat, I know you find her sexy and hot."

"Yeah I do(Oops,why did I say that)...But what's wrong in that...you also find other men sexy and hot, I have never complained."

"Yeah,because you are not possessive about me, not even slightest."

"What? I just give you your space."

"I don't know...I just hate you(Starts wielding her strongest weapon - Aansoo)."

"Why are you so upset.What if I wished her women's day,you didn't want to be called a woman at first place."

"I don't know..You always make me cry..You don't care about me."

"Of course I do(Why the hell I came to wish her, could have hanged out with my friends)"

"You know what your problem is, You don't know what I want."

"(After gathering tonnes of courage in a low voice)...Do you know,what You want?"

CHATTTTAAAAKKKKKKKK !!!!

- I don't know, why I was slapped again, I even didn't know, why I was slapped for the first time.What I know is that she did't know what she wanted.She still does not.Most of them don't.They are that way.And I have come to term and peace with it...Any ways,all said and heard and experienced, I decided not to wish any female below 35, Women's Day,Its a bit risky..So forgive me if you don't get a call or message.


PS-I am not an anti-feminist.I love and respect women and by women I mean of all who are younger,older or exactly 25 years old.

Wednesday, December 25, 2013

क्या सही है ?

क्या सही है ?

जो तुम समझते हो ये वोही है ?
या ना समझने कि बेबसी है ?
क्या सही है?

ये एक  रस्ता है सीधा सादा ?
या इक पहेली है टेढ़ी मेढ़ी ?
या इक तिलिस्म,इक नज़र का धोखा ?
या इक सवाल जो हर कहीं है ?
क्या सही है ?

जो एक रस्ता है ये सीधा सादा, 
पेचीदगी है फिर और भी ज़ियादा।
ये रहगुज़र आती है कहाँ से, 
ये रहगुज़र जाएगी कहाँ तक ?
या ये वहीँ है, रुकी हुई है 
ना जाने कब से,ना जाने कब तक ?
जो मान लूँ मैं कि इस रहगुज़र 
की इन्तहा में, की आख़रत में 
है एक मंज़िल, है इक ठिकाना। 
फिर इक सवाल उठता है ज़हन में,
क्या है ये मंज़िल,क्या है ये ठिकाना ?

जो हमने सुना गर वोही है मंज़िल 
तो कैसे जानें,ये किसे मिली है ? 
या जो लिखा है वो सब ग़लत है,
या खुद समझने में हि कमी है ?
क्यूँ ये जेहद फिर क्यूँ इतनी मेहनत,
इस शै कि ख़ातिर क्यूँ इतनी शिद्दत,
कि जिसका सच हमको पता नहीं है,
वो चीज़ जाने है भी कि नहीं है ?

तो क्यूँ न खुद का रस्ता चुने हम?
जो दे ख़ुशी क्यूँ ना वो करें हम ?
क्यूँ यूँही ना छोड़ दें ये पहेली ?
ये मंज़िलें,आख़रत,ख़ुल्द , दोज़ख़                                  ख़ुल्द =heaven , दोज़ख़ = hell 
जो सच में हैँ तो हुआ करें ये। 
हम दिखने वाली दुनिया के रहने वाले,
धूप को धूप,ग्रहण को ग्रहण कहने वाले। 
मसरूफ़ दिलचस्प कामों में इतने,
कि ख़ुद से ख़ुद को फुर्सत नहीं है,
कि हम ये सोचें, कि हम ये समझें,
है क्या ग़लत और क्या सही है ?

शारिक़ नूरुल हसन 

Tuesday, August 20, 2013

क्या थी ज़रूरत इसकी?

क्या सबब इसका ,क्या वजह ,क्या ज़रूरत इसकी 
कहता है-सवाल ना कर ,है बड़ी अहमियत इसकी। 
ये जो बेख़ुदी,बदहवासी,बेहोशी की हालत है ,
कहता है- तेरी सोच से परे है मसलेहत इसकी।

दिल में भरा है ग़म, ज़हर ज़िन्दगी में है 
कहते हो खुश रहो। बेवकूफी ही तो है।
सदके का दिलासा भी बहुत ख़ूब है मगर,
बच्चा नहीं हूँ,बहलाते हो तबियत किसकी। 

कहे,बस ग़म उठाये जा और इक आह भी ना कर 
नेमत है उसकी,सोच,दर्द की परवाह भी ना कर। 
ये दर्द उठाना,ख़ुश रहना,उसका शुक्रिया करना,
है हशर में बड़े फायदे, है बड़ी इज्ज़त इसकी।              हशर =judgement day

सर यूँ ही झुका देता।क्यों? ऐसा क्यों किया?
दुनिया बना के,सब कुछ पेचीदा क्यों किया। 
नफ़स,शफ़क़,मौत,ये एहसास क्यों दिया ?                 नफ़स=breath, शफ़क़=love 
मेरे मौला,तू ही बता,क्या थी ज़रूरत इसकी?

शारिक़ नूरुल हसन 



Friday, November 9, 2012

तन्हाई कि दोस्ती

तन्हाई कि दोस्ती 

तब ......

एक मैं ,एक तन्हाई और एक जंग हमारी थी ,
जो न जाने कब से ज़हन में, मैंने छेड़ रखी थी,
एक सवाल जिसका छोर दिखता  ही नहीं था,
एक गुथ्ही जो सुलझाऊं, सुलझती ही नहीं थी........

जबकि नफ़रत है मुझे तुझसे,तू तब भी पास आती है,
की तुझे कोसता हूँ जितना,तू उतना मुस्कुराती है,
शायद मजबूरियों पे मेरी तुझको लुत्फ़ आता है।।।।
"तन्हाई!" अब हो चूका बहुत, मुझे जवाब चाहिए ?


और फिर ........

तन्हाइयों के साथ जो कुछ वक़्त गुज़ारा,
अंदाज़ा हो गया, मैं कितना था बेख़बर ।।।
दुनिया के झूठ की सच्चाई- तन्हाई,
हर शख्स क अन्दर की परछांई -तन्हाई।।
हर लम्हा हर घडी,तनहा है हर कोई 
फिर भी जाने क्यूँ  झुठलाये हर कोई,
बड़ी अजीब दुनिया है......
हर सांस का हिसाब तनहा ही देना है ,
छोटी सी है ये बात,कोई मानता नहीं,
बड़ी अजीब दुनिया है......

जब तन्हाई भी एक सच है तो,
नफरत करते हैं क्यूँ इतना,
क्यूँ अपना नहीं लेते हम,
डरते हैं क्यूँ इतना।।।।


और अब.......

तन्हाई की ज़ुबानी,जब उसकी सुनी कहानी,
नफरत नहीं रही,डर भी चला गया।।।।
सब दोस्त हैं मगर,फिर भी कुछ कमी सी है,
कहते हैं सब मगर,' क्या ' कोई सोचता नहीं।।
बड़ी अजीब दुनिया है......
वो जो 'कुछ कमी' सी है,तन्हाई ही तो है,
कि तन्हाई भी है ज़ाहिर,मेरी ' कुछ कमी ' भी ज़ाहिर,
कि हम-नफ्स,हम-सीरत,हम-नसीब हम दोनों,
क्यूँ न दोस्ती कर लें, मुक़म्मल ज़िन्दगी कर लें।।।।।।

                                                  शारिक़ नूरुल हसन 

Sunday, April 15, 2012

KYA DHUNDHTA HUN MAIN...

KYA DHUNDHTA HUN MAIN........


kya dhundhta hun main...
main sochta hun ye, ki
kya dhundhta hun main..
hai kya jo zindagi ko 
hai adhura kiye hui...
hai kaun si wo shai                       {shai=cheez}
mujhe jiski talash hai..


aisa toh nahi, zindagi mein 
andherey hi miley hain....
nindein bhi mili hain
savere bhi miley hain...
aisa toh nahi har ghadi 
mushkil hi miley  hain.....
aansu bhi miley hain,
mujhe manzil bhi miley  hain...
hain dost bhi miley,
mujhe qatil bhi miley hain...




sab kuch mila hai jab, 
fir, kya dhundhta hu main..
sach mein talash hai , 
ya,ye sab hai bewajah....
pagal hun ho gaya,
ya lalach hai ye mera....




fir ye sochta bhi hun ,
ki insaan hi toh hun....
farishta toh main nahi..
ehsasat hain mujhme, 
aur main sochta bhi hun...
par kafi hai ye dalil kya ,
iss bewajh talash ki....
main sochta hun ye aur,
lambi saans bharta hun..
beete huye kal ko fir
main yaad karta hun..
aur dekhta hu ye ki ,
manzil mili hai jab
main khush toh bahut hua
par mutmaeen nahi......         {mutmaeen=satisfied}
aur fir se lag gaya 
janey kiski talash mein....
main hairan hota hun 
khud se ye sawal karta hun ,
' kya dhundhta hun main'....




hum sochte hain ye 
aur shayad sochte ghalat...
jeet, khushiyan, dosti,
manzilein aur mohabbat...
yehi hain jo zindagi ko
muqammal hain banati...
par, ye baat toh khud mein hi
adhura sa ik sach hai...
insaan ke lalach ka 
aaiena ye sach hai....




haar, gham, dushman,
dilo ka tutna, ye sab...
banati hain zindagi ko,
muqammal, haan ye sab...
ki adhurapan hi zindagi ki
sachhai sabse badi hai
ehsas ye hua toh 
ek himmat si mili hai...




ab khush hun main bahut
par sochta toh hun..
ki, kitna ghalat sawal tha,
' kya dhundhta hun main ?'
lo mil gaya jawab.........
' kyun dhundhta hun main ?'


SHARIQUE  N  HASAN

Wednesday, March 14, 2012

ghazal...kyun karun


                  क्यूँ करूँ 


अपनी सफाई पेश सरे राह क्यूँ करूँ
मैं आफ़ताब हूँ ये आगाह क्यूँ करूँ


मैं खुद ही मुसाफिर हूँ रास्ता हूँ फलक भी
राहों की रहबरों की फिर परवाह क्यूँ करूँ


तेरे शफक में भी एक क़तरा ग़रज़ का है
तो मैं भी इश्क तुझसे बे पनाह क्यूँ करूँ


तेरी सच्चाई के भरम में जब सीख लिया जीना
अब तोड़ के भरम सच को स्याह क्यूँ करूँ


अब्बू ने जो कहा था बचपन में,अब भी याद है
फिर उनके परवरिश को कब्रगाह क्यूँ करूँ


मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
फिर बातों में तेरी आके ये गुनाह क्यूँ करूँ


क़दमों में मां की जन्नत मुझको मिली है 'शारिक'
हूर-ओ-परी की जन्नत की मैं चाह क्यूँ करूँ 


                                                   शारिक एन. हसन